गुरुवार, 30 अप्रैल 2020

सच्ची पूजा। By Arjuna Bunty.

सच्ची पूजा।


                                                                                                                           By: Arjuna Bunty.


चैनपुर एक छोटा सा गांव था, जिसमें एक नटखट लड़का अपने माता-पिता के साथ रहता था। जिसका नाम था नंद । नंद नटखट तो था पर होशियार भी था। 
अपने से बड़ों का सदा सम्मान और आदर किया करता था तथा दूसरों की भी मदद किया करता था ।
नंद हर रोज अपने घर से देखता एक पंडित जी जिसका नाम सिरोमणी था ,सुबह उठते राधे कृष्ण का जाप  जोर जोर से करते हुए , स्नान करने नदी जाते , और जाप करते हुए लौटते । राधे  कृष्णा ....
उसके बाद मंदिर जाकर भगवान की पूजा करते तब तक आधा दिन पार हो जाता , फिर घर जाकर भोजन ग्रहण करते,  पर पंडित जी अपने  बुड्ढे मां पिताजी की सेवा नहीं करते।
और उन्हें  खाना भी नहीं दिया करते और ना ही कभी अपने माता-पिता के पास जाकर बैठते।
एक रोज नंद पंडित जी के नदी से स्नान कर लौटते देख बोला पंडित जी , पंडित जी , मुझे आपसे कुछ पूछना है - 
पंडित जी ने कहा-  पूछो (बच्चा) बचवा पर जल्दी करना हमें देर हो रही है। मंदिर जाकर भगवान की पूजा करनी है ठीक है।
पंडित बाबा आप कितने दिनों से अपने भगवान की पूजा इस तरीके से करते हैं ।
बबुआ हम तो 5 साल की उम्र से ही कर रहे हैं ।
नंद फिर बोलता है तब तो आपको पता होगा भगवान कैसे होते हैं। यानी आपने इतने दिनों में भगवान से मिल लिया होगा।
पंडित जी ने कहा -  नहीं (बच्चा) बचवा  का है ना भगवान तो busy रहते है ना इस लिए नी देखा.
नंद कहता है -   पर आप तो इतने दिनों से भगवान की पूजा करते हैं और इतना कष्ट भी करते हैं फिर भी आपको भगवान नहीं मिले पंडित जी -नहीं नंद!
नंद फिर कहता है -   मुझे पता है क्यों नहीं मिले ।
पंडित जी पूछते हैं क्यों ?
नंद  कहता है आपको पता है  पंडित बाबा भगवान तो सभी जगह है पर फिर भी वह अपने हर भक्त को या अपने हर बच्चे को देखने के लिए बराबर ध्यान रखने के लिए इस धरती पर रूप बदल कर आए हैं ।
वह रूप संसार के हर घर में मिलता है ।
पंडित जी-  पर हमको तो नहीं मालूम।
नंद कहता है वह रूप ही तो मां-बाप का है आप आज तक अपने भगवान की अवहेलना कर माटी की मूर्ति की पूजा की इसलिए वह भगवान नहीं मिले ।
अगर आप अपने भगवान की पूजा, प्रार्थना ऐसे करते तो शायद आपको भगवान मिल जाते ।
पंडितजी की आंखों में आंसू वह आया। 
उन्होंने नंद को गोद उठा लिया और अपनी गलती की क्षमा मांगी नंद ने कहा यही क्षमा आपको अपने मां पिता से मांगनी चाहिए ।

तो इसलिए बच्चों अगर पूजा ही करनी है, तो भगवान की जगह अपने मां-बाप की करो उस भगवान को तो किसी ने नहीं देखा पर जिस भगवान के दर्शन रोज ही होते हैं उनसे तो आशीर्वाद ले लो फिर हमें किभी मौके ना मिले ।
आप सभी  अभिभावकों से विनती है कि आप अपने छोटे-छोटे बच्चों से आज  से ही भारतीय संस्कार, संस्कृति, तहजीब की खुशबू में सनी ये संस्कार रूपी  बीज बोना शुरू कर दें। ताकि हमारे देश को फिर से भगत सिंह सुखदेव राजगुरु गांधी जैसे सच्चे वीर सेनानी दे सकें।

समाप्त।

गुरुवार, 23 अप्रैल 2020

About Postscript (ebook)







These two ebooks 
1. Postscript
2.शब्दांश 
Written by- Mr. Arjuna Bunty

This book is for Housewife, Students, working people.
If you want to grow your skills, and  your self-belief then
Must read...

Published on Amazon, Google Play Books, and Instamojo...

1. Postscript
How to write an introduction,
Body language 
How to write letters writing
How to write emails
Emails etiquettes.
With details.
Visit the store
https://imojo.in/34z8xyp
you also connect with me.
MY PLATFORM
https://english.pratilipi.com/user/arjuna-bunty-4qio0x9r54
https://www.facebook.com/arjuna.bunty
https://www.youtube.com/channel/UClyA3DGVpsL2jZ7QhmSAVoA
https://www.instagram.com/arjunabunty/?hl=en
http://www.hastakshep.co.in/

लेखक का सपना।


अचानक
आज सुबह अर्जुन अखबार लेकर दौरा दौरा अपने एक दोस्त के घर पहुंच जाता है जहां देखता है उसके पिता की लाश उसके दरवाजे पर पड़ी है ।
वो बेसुध होकर जमीं पर गिरा पड़ा है, अनुज उठ हुआ क्या ?
ये सब क्या हो गया है कुछ तो बोल और अर्जुन इतना कहते कहते रोने लगा।
अनुज धीरे से अपनी पलकें उठाता है, और धीरे धीरे अपने पैरों पर खड़े होने की कोशिश करता हुआ कहता है---
अर्जुन तू तो जनता है ना मेरे पिता एक लेखक थे , वो अपनी पूरी जिंदगी सामज को समाज का आइना दिखाने में लगे हुए थे फिर फिर क्यों कोई इस बात को नहीं समझता क्यों कोई आज भी हिन्दू , मुस्लिम , जाति , मजहब , बर्चस्व , के नाम पर कमज़ोर का रक्त बहा रहें है समाज के लोग इतने संगदिल, अमानवीय क्यों है, क्यों?

लेखक देश का वो धरोहर है जिसको सम्मान तब मिलता है जब उसके पास जिंदगी  कुछ कम पड़ जाती है , या जिंदगी रहती ही नहीं जैसे प्रेमचन्द को ही ले लीजिए जीते जी कोई उनको वो सम्मान ना दे पाया जिसकी उनको जरूरत थी।

एक लेखक सब कुछ चंद कागज के टुकड़ों पर अपनी सब से सस्ती चीज से जिंदगी लिख देता है ताकि कोई और वो ना सहे जो उसने सहा है। आने वाली नस्लें इसी कागज के चंद टुकड़ों में अपनी सारी खुशियां ढूंढेंगे। परंतु हम एक लेखक के लिए कभी नहीं सोचते लेखक ही है जो किताबों में रंग भरता है, देश का प्रतििधित्व अप्रत्यक्ष रुप से प्रदर्शित करता है, लेखक एक बेरंग सी दुनिया को रंगीन कर देता है, निर्जीव सी चीजों में आग भर देता है, साहब, लेखक कभी अपने लिए नहीं जीता वो सिर्फ आने वाली नस्लों के लिए जीता है। वो कभी अपने लिए नहीं लिखता जब भी लिखता है समाज, देश, राष्ट्र, और मानव जाति के कल्यणार्थ ही लिखता है।
लेकिन हमारा ये समाज कभी इस बात को नहीं जान सकेगा क्योंकि सब को अपना ईगो सर्टिसफाइड करना होता है।
लेखक का सपना इतना ही होता है कि वो एक ऐसी दुनिया बनाना चाहता है जहां प्यार , मोहब्बत, नेकदिली, सम्मान, संस्कृति, संस्कार, इज्जत, इबादत,इनायत, सब कुछ अदभूत हो।
नई पीढ़ी इस बात को समझ ले यही काफी है एक लेखक के लिए।

To be continued....
                


Arjuna Bunty.


जिंदगी।

                             

                           जिंदगी,
बड़ा प्यार है मुझे जिंदगी से, 
लोगों को जिंदगी समझ कहां आती है ये तो एक दिलफेंक ही समझ सकता है कि आखिर जिंदगी है क्या ।
जिंदगी जिंदादिली का नाम है,
जिंदगी एक दूसरे की खुशी में बिताया सुबह शाम है,
जिंदगी अपनों के साथ रोने में,
जिंदगी अपनों के साथ खुशी से रहने में
थोड़ा लड़ने में, थोड़ा झगड़ने में,
थोड़ी मस्ती में, थोड़ी मोहब्बत में ,
किसी की इनायत में, किसी की इबादत में
जिंदगी है उन सभी मुस्कुराते चहरों में।
दोस्तो सच जिंदगी बहुत हसीन है
पर ना जाने किसकी नजर लगी है
की आज कल जिंदगी महरूम हुई जा रही है
जिंदगी पहले तो आकाश में , पहाड़ों में, नदियों में, बहारों में, रेंतो में
खलिहानों में, और तो और टूटे मकानों में मिल ही जाती थी,
पर ,
अब तो ऊंचे मकानों में भी नहीं मिलती जिंदगी।।
Arjuna Bunty.

सच्चा प्रेम

कोई हद से ज्यादा
गर तुझको चाहे
तेरे लिए कोई
सब कुछ लुटाए
मिले गर तुझसे
तो सपने सजाए
तेरे साथ पथरीली रास्तों पर
तक चलता जाए
हो कोई गम तेरा
उसको वह बांट जाए
तूफान आने पर
वह साहिल बन जाए
   चलाएं कोई कटार तो
वह ढाल बन जाए
तो दोस्त समझ लेना
वह कोई और नहीं
तुम्हारा सच्चा प्यार है ।

Arjuna Bunty.


ग़म के फसाने।



यूं बयां भी ना करें
जो गम के फसाने हैं ।
मोहब्बत कौन जाने
किस किसको निभाने हैं ।
भले गुमनामी में जीते हैं
आशिकों के नगमे सभी ने जाने हैं ।
मोहब्बत में मरने वालों के
ये किस्से पुराने है ।
इन वादियों में कितने
न जाने , कितने खजाने हैं ।
यूं बयां भी ना करें
जो गम के फसाने हैं ।
Arjuna Bunty


तेरे आने से!

तेरे आने से!


यूं तो जिंदगी में,
गमों का आसरा था
इक तेरे आने से
खुशी की लहर छाई है।

हर तरफ धूप और तन्हाई
की बदरी छाई थी
तेरी जुल्फों का करम है
जो प्यारी घटा लाई है।

मौसम का मिजाज भी
पूरे सुरूर पर था
बस तेरे आने से
जमकर बरसात आई है।

यूं तो अल्फ़ाज़ नहीं मिलते थे कभी
पर तुझे देखते ही ये नज़्म बन आई है।
Arjuna Bunty।


बख्शा नहीं किसी ने ।



ख्शा नहीं किसी ने
गलतियां मेरी ।

जो दर्द के रास्ते पर
चलता ही गया ।

खुद की तलाश थी
मुझको हर जगह।

बर्बादियों के हाथ
तमाशा सा बन गया।

वो शख़्स कभी सख्त भी ना हुए
वह जिंदगी से मेरी रुखसत भी ना हुए ।

वह जिंदगी बन गए मेरी
पर इसकी वजह भी ना हुए।

हिम्मत हुई ना कभी
तोड़ूं  मै बंदिशें अपनी।

उनकी एक झलक पाने को
आग की लपटों पर चलता ही चला गया ।

बख्शा नहीं किसी ने
गलतियां मेरी ।
Arjuna Bunty.


शनिवार, 18 अप्रैल 2020

आईना आपको आप बनाता है ।




वह कभी झूठ नहीं,
सब कुछ साफ दिखाता है।
आईना आपको आप बनाता है ।


खुद से झूठ बोलते हो
दूसरों से छुपते फिरते हो
कहां हो,कहां तक आप जाओगे,


वह कभी झूठ नहीं,
सब कुछ साफ दिखाता है।
आईना आपको आप बनाता है ।


कभी आईना पलट कर देखें 
आईना आपको अतीत तक पहुंचाता है,
आईना है जो आपको आप बनाता है।


आईने के सामने खुद को,
जानने का प्रयत्न करें 
आईने में आपका विश्वास दिखाता है।


आपको सब कुछ साफ दिखाता है 
आईना आपको आप बनाता है ।
ये आईना ही है जो ,
आपको आप बनाता है।


Arjuna Bunty.

रविवार, 12 अप्रैल 2020

जिद थी।।

जिद थी,

यह  जिद थी हमारी

कि चांद को चुरा कर

अपने घर लाएंगे

सितारों को हम

दीवारों पर सजाएंगे

सूर्य से रातों में भी

ओवरटाइम करवाएंगे।
जिद थी,

यह जिद थी हमारी की

तकदीर यूं तो  भगवान बनाता है

हम अपनी तकदीर खुद बनाएंगे

हाथों की लकीरों को

बदलकर मनमर्जी सजाएंगे

जो दिल करेगा

बस वही करते जाएंगे।
जिद थी

यह जिद्द थी हमारी कि

वक्त का साथ ना मिला

तो क्या वक्त को हम

अपने कदमों तले लाएंगे

जब वक्त ना देगा साथ

उसको फिर से पीछे से

चलवांगें

रोक देंगे उन लगातार चलते

टिक टिक की धुन को

वहां हम कर्णप्रिय संगीत बजवांगे ।

जिद थी
ये जिद थी हमारी

कि जो पल बीत गए

उस पल को फिर से जिएंगे

जो अपने छोड़ गए

उनको फिर से यहां बुलाएंगे

जो रिश्ते टूट गए

वह रिश्ते बनाएंगे

यह जिद थी हमारी

की चांद को चुरा कर अपने घर लाएंगे ।
Arjuna Bunty


मुझे वह याद करते हैं



कभी रोते नहीं है ,बस
मिलने की फरियाद करते हैं
पलकें बिना झपकाए
राहों पर इंतजार करते हैं
सच मुझे वह याद करते हैं ।

बिरहा की नहीं है बात ये
मोहब्बत थी उनके दिल में
वह हमसे रूठे थे
हम उनसे रूठे थे
अब तो दिल का ना लगना
सभी बार-बार कहते हैं
सच मुझे वह याद करते हैं।

पहुंच पाऊं अगर जो मैं
उनके पास इस कदर तो
वह मुझे आगोश में भर कर
ना जाने की दुआ बार-बार करते हैं
सच मुझे वह बहुत याद करते हैं ।

बरामदे पर बैठकर
वो दरवाजे की आहट को
हर बार तकते हैं
खुली आंखों से
वह मेरे द्वार पर आने की
राह हर बार करते हैं
सच पूछे तो
वह मुझे बहुत याद करते हैं ।

खड़े रहकर द्वार पर
हमसे मिलने का प्रयत्न
बार-बार करते हैं
सच में मुझे याद करते हैं।

घरी घरी उनसे वो लड़ना
मुझे अब तो अखरता है
वह तुमसे मिला प्यार
अब ना जाने क्यों
बहारों में बिखरता है
रहो ना दूर तुम मुझसे
तुम सताओ ना इस कदर भी
रुकी रुकी है सांसे
कपकपाते गुलाबी होठ
सूखे नैनों में पड़े सिकुड़न
वो उनके चेहरे का उत्तरण
उदासी का ये आलम भी
सब कुछ साफ कहते हैं
कोई तुमसे बहुत प्यार करते हैं
सच मुझे वह याद करते हैं
Arjuna Bunty.

गुरुवार, 9 अप्रैल 2020

जरा जरा गम होता है।।

३.ग़म होता है ।।।

कह दो चिरागों को
जला ना करें आहिस्ता से
हमें उसके जलने का
जरा जरा गम होता है ।
          
          वो चाहे मेरे लिए जलें
           या रौशन जमाने को करने
           उसकी तड़प से कभी कभी
            जरा जरा गम होता है ।।

कह दो चिरागों को
जला ना करें आहिस्ता से
हमें उसके जलने का
जरा जरा गम होता है ।
               
              शाम की अब परवाह ही क्या
                   रात गुजर ही जाती है
               अंधेरे की खातिर जलने से
                    जरा जरा गम होता है ।।

कह दो चिरागों को
जला ना करें आहिस्ता से
हमें उसके जलने का
जरा जरा गम होता है ।
          
                चुपचाप सितम को सहने की
                     उसकी जो ये आदत है
                  आहिस्ता जल जल कर भी
                 वो मुझको जलाता रहता है ।।

कह दो चिरागों को
जला ना करें आहिस्ता से
हमें उसके जलने का
जरा जरा गम होता है ।


                                       सप्रेम:  अर्जुन बंटी


एक ख़्वाब।।

  ।।एक ख़्वाब।।

मैंने भी एक ख़्वाब देखा है,
सबको एक साथ देखा है।

शिक्षा और बुलंदी का ताज देखा है,
खुशियों से भरा सुनहरा बाग देखा है।

मैंने भी एक ख़्वाब देखा है,
सबको एक साथ देखा है।

वहां कोई पराया नहीं ,
सबको खुश मिजाज देखा है।

मैंने भी एक ख़्वाब देखा है,
सबको एक साथ देखा है।

दुख का ना साख देखा है,
सभी में प्यार बेहिसाब देखा है।

मैंने भी एक ख़्वाब देखा है,
सबको एक साथ देखा है।

बुजुर्गों का आदर सम्मान देखा है,
सभी का एक दूसरे पर विश्वास देखा है।

मैंने भी एक ख़्वाब देखा है,
सबको एक साथ देखा है।।


                                         ।।अर्जुन बंटी।।


जिंदगी का राज।





ये राज़ है जिंदगी का
अरमान बुझ भी जाए।

इन आंखों पर अक्श के चाहे मोती आए।।

मुस्कुराती रहेंगी नजरें मेरी सदा
कोई लाख मेरे जिस्म पर घाव बना जाए ।

इन आंखों पर अक्श के चाहे मोती आए।।

हो सके ना पूरे मेरे सपने कभी
मगर मंजिलों को पाने की चाह ना रुक पाए

इन आंखों पर अक्श के चाहे मोती आए।।

हर एक लफ्ज़ मेरे सच्चाई ही कहेंगे
दुनिया की भीड़ मुझपर कितने भी जुल्म ढाए

इन आंखों पर अक्श के चाहे मोती आए।।

अगर बन ना पाऊं मैं एक गुणवान प्राणी
कोई मुझे कभी भी सैतान ना बनाए ।।

इन आंखों पर अक्श के चाहे मोती आए।।

झुकी नजर है मेरी पर देखता सबकुछ हूं
अंधेरे दिल को कोई जगमगाता जाए ।

इन आंखों पर अक्श के चाहे मोती आए।।

होंठ मेरे चुप है जज्बात भड़क रहे हैं
कोई इस जज़्बात को और भड़का जाए।

इन आंखों पर अक्श के चाहे मोती आए।।

कभी ना बंद अपनी मुस्कान हम करेंगें
इसके लिए मुझ पर इल्ज़ाम कुछ भी आए ।

इन आंखों पर अक्श के चाहे मोती आए।।

                                    अर्जुन बंटी ।।।


सोमवार, 6 अप्रैल 2020

तू सब जानती है मां।

तू मां न, तू सब जानती है ।

मेरा रोना भी,
मेरा हंसना भी ,
मेरा सोना भी ,
मेरा जगना भी,
मेरा पाना भी ,
और मेरा खोना भी
मेरी हर एक हरकत पहचानती है।

तू मां है न, तू सब जानती है । 

कब कब मैंने सिसकियां ली,
कब-कब मैंने अक्स बहाए 
और हां कब मैंने ठहाके लगाए 
कब गुस्सा हुआ और
कब तू आकर मुझे मनाए 
हर वक्त का है इल्म तुझे
हर दर्द का मर्म तू पहचानती है।

तू मां है ना तू सब जानती है ।

मैं चुप हूं , तो क्यों हूं ,
मेरी खुशी और मेरे गम,
मेरे वो हसीन पल और 
मेरे उदास लम्हे ,
मेरे हर मूड को पहचानती है ।

तू मां है न, तू सब जानती है। 

वो लड़खड़ाते कदम से लेकर,
अब तक का सफर ,
गिरने के बाद का तेरा स्नेह भरा स्पर्श,
वो तेरी डांट और तेरा प्यार ,
क्या मुझे पसंद है  और
क्या नहीं, तू सब जानती है ,
वो मेरी गलतियां वो मेरी कमियां,
तू ही है जो सब पहचानती है।


तू मां है न, तू सब जानती है। तू मां है न, तू सब जानती है। ।


                             (Arjuna Bunty).

प्रयत्न।।


जिंदगी वहां से शुरू करने में ज्यादा मज़ा है जहां पर लगे की अब मुझसे जिंदगी नहीं जी जा सकती है।
क्योंकि, यही वो मौका होता है , जब हमें अपने कौशल को दिखाने का मौका मिलता है, कठिनाइयों के बिना तो जीने की आदत सी पड़ जाती है, जिससे हम निर्बल बन जाते है, अपनी किस्मत खुद बनानी है तो वहां जाकर रुकने या खुदकुशी करना व्यर्थ है।
हां मगर वहां से नई शुरुआत कर के जिंदगी में कुछ पाना वो आपका " कौशल" Tailent" या हुनर" है।
परिस्थिति हर समय एक जैसी नहीं रहती और ना ही हमारी तरक्की का असीम संभावनाओं का रास्ता कभी बंद होता है,
बस खुद को हौसला देने की जरूरत होती है उस नाज़ुक परिस्थिति में खुद को संभालने की आवश्यकता पड़ती है उस समय खुद की पीठ थपथपाने से गुरेज न करो अपनी पीठ थपथपा कर जिंदगी की जंग लड़कर जितने को कमर कस लो उतर जाओ युद्ध के मैदान में।
" यथा चतुर्भिः कनकं परीक्ष्यते
निघर्षणच्छेदनतापताडनैः ।
तथा चतुर्भिः पुरुषः परीक्ष्यते
श्रुतेन शीलेन गुणेन कर्मणा ॥ "

जिस तरह सोने की परख घिसने से, तोडने से, गरम करने से और पिटने से होती है, वैसे हि मनष्य की परख विद्या, शील, गुण और कर्म से होती है ।

शायद आपका यही हौसला ईश्वर को आपको वह सब कुछ  लौटाने का कारण बने जिसके आप और सिर्फ आप ही हकदार हैं। परमात्मा विवश होकर आपको आपका हक वापस करेंगे यह सत्य है " सत्यमेव जयते "सत्य करवा कठिन और जटिल होता है ।  परन्तु सत्य हमेशा झूठ से ऊपर और गलत से बलशाली होता है इसलिए तो कहा आप निर्बल नहीं हो सकते , आप बलशाली हो ।

उठो  लड़ो भागो और तेज और तेज भागो आपको जंग जितनी है, अगर  सैनिक संकट के डर से लड़ना छोड़ दे तो भी उसे जीने का हक नहीं है लड़कर जितना ही पुरुष का पुरुषार्थ है ।जो वस्तु दूर है और जो सरलता से नहीं मिल सकती है। वह तपस्या, साधना, परिश्रम से मिल जाती है जीवन में परिश्रम सबसे प्रबल है।

टूटना आसान है, संभलना मुश्किल ,कभी टूट कर बिखरने से पहले संभल कर खड़े हो कर तो देखो, मजा कितना है।

हौसला टूटने और हौसला बनाने के बीच का दर्द बहुत ज्यादा है परंतु , इस पीड़ा के बाद के पल का मजा कितना है ।

सीने में छुपा कर अपनी कमी का रोना रोने से बेहतर है परिस्थिति से लड़कर मरने में, मजा कितना है।

 मंजिल तक पहुंचने से पहले , दम तोड़ने से बेहतर मंजिल पर लड़खड़ाते हुए पहुंचने में , न जाने मजा कितना है।

 दोस्त यह मंजिल पाने वालों से जाकर पूछो,  कुछ कदम दूर जब थे तो, क्या-क्या ना सहना पड़ा बस एक बार मंजिल मिला तो उस जश्न का , मजा कितना है ।

ना उम्मीद हो चुका था जब किस्मत से, खुद पर किया यकीन , उस यकीन का सच्चाई में बदलने से , इस वक्त के सितम का , मजा कितना है । मजा कितना है ।।

सपने देखना आसान है परंतु उसे पूरा करना बड़ा कठिन है तो इसके लिए सपने देखना ना छोड़े क्योंकि जो सपने देखते हैं वही उन्हें पूरा करने का माद्दा (दम )रखते हैं । आपके बेहतरीन जीवन के लिए मेरी तरफ से छोटी सी कोशिश ।।

                                                           धन्यवाद 

                                                      (Arjuna Bunty)

चेहरा नजर आया है।


अहले सुबह उठकर

ये सुरूर जो छाया है

आज फिर से सपनों में

तेरा चेहरा नजर आया है।

पलभर को बस

ये खुमार छाया है

आज फिर से सपनों में

तेरा चेहरा नजर आया है।

तराश कर जिस तरह

रब ने तुझे बनाया है

सच तेरे दीदार को

मैंने खुद को ना जगाया है

क्योंकि तेरा चेहरा नजर आया है।

चमक तेरे तन की

तारों को इतना भरमाया है

की चांदनी देखकर

चांद  को बादलों ने छिपाया है

क्योंकि तेरा चेहरा नजर आया है।

अहले सुबह उठकर

ये सुरूर जो छाया है

आज फिर से सपनों में

तेरा चेहरा नजर आया है।

अर्जून बंटी

रविवार, 5 अप्रैल 2020

नशा


प्रिय पाठकों,

हम इंसानों की एक बहुत ही खास आदत होती है, सच पूछिए तो हमें हर चीज की पहले पहल बुराई दिखती है, अच्छाई हमें दिखती ही नहीं या हम उसे देखना नहीं चाहते हैं , उसे हमें जबरदस्ती दिखानी पड़ती है । खैर , आज तक किसी ने नशा का सटीक और विस्तार से चर्चा नहीं की ।
मालूम नहीं मुझे नशा आखिर है क्या ? लेकिन, जो भी हो या तो बुरी, है या अच्छी है । बुराई और अच्छाई दोनों हमारे लिए मायने रखता है परंतु अगर हम उसकी अच्छाई देखते हैं तो शायद हमें जीना आ जाए ।
बिना नशे के दुनिया को देखने का मजा ही कुछ खास है , नशे में जो रंगीनियां दिखती है उसका हमेशा एक ही पहलू होता है धोखा, कलह, आंसू , दुख , पीड़ा, छल और न जाने क्या-क्या ?
परंतु ,
जब आपकी आंखों में नशा ना हो उसमें सपने हो तो इस दुनिया की रंगीनियत में सात रंग अलग-अलग मजेदार ढंग से दिखते हैं ।
जहां, सफेद रंग शांति, प्यार, सौहार्द्र को दिखाता है ,
काला रंग दुख , पीड़ा,  तकलीफ, क्लेश को ,
हरा रंग समृद्धि, हरियाली, जीत को उसी तरह
लाल रंग प्रेम को खतरा को
और इसी तरह सभी अपनी अपनी विशेषता को जाहिर करते हैं। हम इंसान हैं, हमें रंगों का विभेद स्पष्ट प्रतीत होता है इस धरती पर ज्ञान से परिपूर्ण हमें ईश्वर ने इसलिए बनाया है कि हम उसके हर रंग का अनुभव कर सकें उसका आनंद उठाएं और उसका सम्मान कर सके,  इसको जीवन में उतारें ।
नशा हमारी सोचने की शक्ति संकुचित कर देती है, मादक पदार्थ हमें हमसे छीन लेता है ।
दोस्त, मजा तो तब है जब जीवन में प्रेम, स्पर्श , दया,  दुख,  खुशी, लड़ाई, दर्द, तकलीफ, अलग-अलग प्रकार की चीजें हो ।
बुजदिल की तरह सर झुका कर जीने वालों में से हम नहीं , सुना है नशे में बोतल नाचती है, हमने नशा को बनाया है, हम नशे के आदी कैसे हो सकते हैं । कोई हमें भी नचा के दिखाए जरा , नशा इंसान को इंसान से दूर कर देती है। नशा हमें गुमनाम कर देती है, हमें बदनाम कर देती है ,अकेला ,कमजोर, असभ्य जानवर बना देती है।

अरे , बोतलों में क्या ढूंढते हो जिंदगी की खुशी
इसमें वह रास नहीं , जो तुम्हें दे सके खुशी,
रंगीन शराब की वो बिसात नहीं,
जिसको पीने से जिंदगी की कहानी बदल जाए ,
ऐसी कोई बात नहीं ,
एक पल के लिए तो मिलती है ,
पर जिंदगी की फिर वही से आगाज होती है ।

नशा ही करना है तो मंजिल पाने का नशा हो, किसी के प्रेम का नशा हो, दुनिया को बदलने का नशा हो, किसी को खुशी देने का नशा हो,  देश के लिए मर मिट जाने का नशा हो, दुनिया को अपने हुनर से दिमाग घुमा देने का नशा हो, तब मज़ा है नशे का। बेहोश होकर जिंदगी जीने से बेहतर है होश में रहकर हर रुकावट , हर संकट से हर मर्ज से डटकर लड़कर , जीतकर जीने में है।
अब तक नशा हमको आजमाती थी, आज से नशे को आजमाया जाए।

   (  Arjuna Bunty )


मुझे प्रतिलिपि फॉलो करें

शनिवार, 4 अप्रैल 2020

आप ही हो पापा


  पिता को समर्पित


मुझे भगवान से कुछ और ना चाहिए,
आपसे मुझे वो सारी खुशियां मिली,

जब भी मैं उदास पड़ा,
आपने दी मुझे आपनी दोस्ती,

मै अनजाने, कई गलतियां करता रहा,
पर आपने कभी मुझसे मुख न मोड़ा,

साथ सबने छोड़ दिया 
पर आपने कभी हाथ न छोड़ा ,

हार जब भी मैंने माना 
आपने मुझे हौसला दिया ,

हर दर्द और गम अपने छुपाकर 
आपने मुझको मुस्कान दी,

गिर गया जब भी चोट खाकर,
आपने ही उठने की जान दी,

आप ही हो पापा,
जिसने मुझे एक नाम और अपनी एक पहचान दी।


नोट:-  मां बाप भगवान का ही वह रूप है ,

जिसके दर्शन और पूजा हम

नित्य आपने हाथों से कर सकते है 

परन्तु अपनी अज्ञानता के कारण हम भगवान को ढूंढते रहते है।  

                 I love you Papa ...             

  अर्जुन बंटी


शुक्रवार, 3 अप्रैल 2020

भूमिका


                                            भूमिका

                                                : अर्जुन बंटी :


स्वागत है आपका,

साहित्य की एक अलग दुनिया में, यह एक अदभूत दुनिया है जहां आपको थोड़ा शुकून के पल और खुद से रूबरू होने का मौका भी मिलेगा।
दोस्तों ,
हर इंसान अपनी आशाओं को पूरा करना चाहता है, जिसे पूरा करने को वो हर असंभव प्रयास करता है शायद आप भी उन लोगों में शामिल हैं और एक दिन अपनी मंजिल तक पहुंच जाता है,
अगर आप में हुनर है तो कोई भी उसे दबा नहीं सकता। यहां तक कि गरीबी भी उसके आगे बौनी है। कभी  न कभी दुनिया आपके हुनर से रूबरू होती है। जिंदगी में किसी का हुनर जल्दी सामने आ जाता है, किसी के हुनर को सामने आने में थोड़ी देर लगती है। आप भी निरंतर प्रयासरत रहे मंजिल दूर हो सकती है पर मिलेगी जरूर।
आज के इस दौड़ में जहां किसी को फुर्सत के पल भी नसीब नहीं होते, वहीं हम और हमारी आने वाली पीढ़ी अपनी संस्कृति, संस्कार और साहित्य से दूर होते जा रहे है। हमारा प्रयास बस इतना ही होना चाहिए की हम अपनी आने वाली पीढ़ी को साहित्य उपहार के रूप में दे सके। जिसका एक छोटा सा प्रयास मेरे तरफ से साहित्य की ओर के रूप में है।
जिसके माध्यम से मैं आप लोगों के सामने अपनी कुछ रचना और साहित्य के कुछ पहलू को रखूंगा । प्रतिलिपि पर मेरी रचनाएं काफी सराहनीय रही और आपका प्यार बेहिसाब मिला इससे प्रेरणा पाकर मैंने ये निर्णय किया। आशा है यहां भी आपका प्यार बेहिसाब मिलेगा ।
 मुझे प्रतिलिपि फॉलो करें
https://hindi.pratilipi.com/user/4qio0x9r54?utm_source=android&utm_campaign=myprofile_share
मेरी रचनाएं पढ़ने के लिए जो प्रतिलिपि पर  है आप से विशेष निवेदन है आप रचना पढ़ने के बाद वहीं रेटिंग और अपना कमेंट दें और अच्छी लगे तो और भी पाठकों को इससे जोड़े जो मुझे और भी अच्छा करने की प्रेरणा दे ।

दोस्तों, आशा करता हूं साहित्य की ओर का ये पहला अंक आपको अच्छा लगा होगा कृपया कमेंट के माध्यम से हमें अपने सुझाव जरूर बताएं। और इस पोस्ट को अपने परिजनों के साथ साझा करें ताकि जो साहित्य से दूर हो रहें हैं उनके जीवन में साहित्य का ये पुंज रोशनी प्रदान कर सके।
                                                   
                                                      धन्यवाद।।

भरोसे का व्यापार:-

आग्रह। कृपया इस रचना को एकांत में समय देकर और आराम से पढ़े । भरोसे का व्यापार सुनो सुना है व्यापार गिरा है चलो अच्छा है आ...