गुरुवार, 23 अप्रैल 2020

लेखक का सपना।


अचानक
आज सुबह अर्जुन अखबार लेकर दौरा दौरा अपने एक दोस्त के घर पहुंच जाता है जहां देखता है उसके पिता की लाश उसके दरवाजे पर पड़ी है ।
वो बेसुध होकर जमीं पर गिरा पड़ा है, अनुज उठ हुआ क्या ?
ये सब क्या हो गया है कुछ तो बोल और अर्जुन इतना कहते कहते रोने लगा।
अनुज धीरे से अपनी पलकें उठाता है, और धीरे धीरे अपने पैरों पर खड़े होने की कोशिश करता हुआ कहता है---
अर्जुन तू तो जनता है ना मेरे पिता एक लेखक थे , वो अपनी पूरी जिंदगी सामज को समाज का आइना दिखाने में लगे हुए थे फिर फिर क्यों कोई इस बात को नहीं समझता क्यों कोई आज भी हिन्दू , मुस्लिम , जाति , मजहब , बर्चस्व , के नाम पर कमज़ोर का रक्त बहा रहें है समाज के लोग इतने संगदिल, अमानवीय क्यों है, क्यों?

लेखक देश का वो धरोहर है जिसको सम्मान तब मिलता है जब उसके पास जिंदगी  कुछ कम पड़ जाती है , या जिंदगी रहती ही नहीं जैसे प्रेमचन्द को ही ले लीजिए जीते जी कोई उनको वो सम्मान ना दे पाया जिसकी उनको जरूरत थी।

एक लेखक सब कुछ चंद कागज के टुकड़ों पर अपनी सब से सस्ती चीज से जिंदगी लिख देता है ताकि कोई और वो ना सहे जो उसने सहा है। आने वाली नस्लें इसी कागज के चंद टुकड़ों में अपनी सारी खुशियां ढूंढेंगे। परंतु हम एक लेखक के लिए कभी नहीं सोचते लेखक ही है जो किताबों में रंग भरता है, देश का प्रतििधित्व अप्रत्यक्ष रुप से प्रदर्शित करता है, लेखक एक बेरंग सी दुनिया को रंगीन कर देता है, निर्जीव सी चीजों में आग भर देता है, साहब, लेखक कभी अपने लिए नहीं जीता वो सिर्फ आने वाली नस्लों के लिए जीता है। वो कभी अपने लिए नहीं लिखता जब भी लिखता है समाज, देश, राष्ट्र, और मानव जाति के कल्यणार्थ ही लिखता है।
लेकिन हमारा ये समाज कभी इस बात को नहीं जान सकेगा क्योंकि सब को अपना ईगो सर्टिसफाइड करना होता है।
लेखक का सपना इतना ही होता है कि वो एक ऐसी दुनिया बनाना चाहता है जहां प्यार , मोहब्बत, नेकदिली, सम्मान, संस्कृति, संस्कार, इज्जत, इबादत,इनायत, सब कुछ अदभूत हो।
नई पीढ़ी इस बात को समझ ले यही काफी है एक लेखक के लिए।

To be continued....
                


Arjuna Bunty.


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